भारतीय कृषि में पिछले कुछ गत वर्षों में कृषि विकास में तेजी से कमी आई है। किसानों के लिए आवश्यक समर्थन पद्धतियों जैसे कि अनुसंधान, विस्तार, इनपुट आपूर्ति और आश्वस्त लाभप्रद विपणन के लिए अवसरों की समीक्षा और उनमें सुधार करने की आवश्यकता है। वर्तमान में सरकार की नीतियां जरूर बनती हैं लेकिन उनका सही क्रियान्वयन नहीं हो पाता, जिससे उनका उद्देश्य हासिल नहीं हो पाता। फसल बीमा योजना, कृषि सिंचाई योजना, परंपरागत कृषि विकास योजना, किसान संपदा योजना, स्वास्थ्य हेल्थ कार्ड आदि सरकारी योजनाओं से किसानों में उत्साहवर्धन अवश्य हुआ लेकिन इन योजनाओं का सही क्रियान्वयन नहीं हो पाया जिससे उद्देश्य हासिल नहीं हो पाया।
स्वतंत्र भारत से पूर्व और स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय किसानों की दिशा और दशा में केवल 19-20 का ही फर्क नज़र दिखाई पड़ता है। समृद्ध किसानों की गिनती मात्र उंगलियों पर की जा सकती है। किसानों को ऋण माफ किए जाने की व्यवस्था को और मजबूत तथा उदार बनाने की आवश्यकता है। ऋण माफी से निश्चित रूप से उन किसानों को लाभ हुआ है जो कभी अच्छे ऋण भुगतानकर्ता थे ही और उनमें यह प्रवृत्ति विकसित हुई कि ऋण की अदायगी करने से कोई लाभ नहीं है। किसी न किसी समय जब सरकार माफ करेगी तो इसका लाभ उन्हें मिलेगा ही। ऐसे में जो किसान समय से ऋण अदायगी करते रहे हैं, वे स्वयं को ठगा-सा महसूस करने लगते हैं। उनमें यह आस्था विकसित होने लगती है कि समय से कर्ज अदा करने से कोई लाभ नहीं है, जब बकायेदार सदस्यों का कुछ नहीं बिगड़ रहा है तो हमारा भी क्या बिगड़ेगा।
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