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Footpath: Have you ever seen the night of the poor? If you want to see, get out on the road.

  • 22 Dec, 2022
Have you ever seen the night of the poor people?

Winter: How painful is the cold night. If you want to know it condition, then sometime go out on the streets of the city at night. You will be shocked to see the people chilling in the cold under the open sky in the harsh winter. It is not a matter of one city, there are many such poor people in almost all the cities of India, who live their daily lives by demanding something from people and earning something to feed themselves and their families. The man is accompanied by his wife and children who spend the cold winter night on the pavement by the side of the road. When cold air hits the body, people shrink and unite their legs and chest. There is no relief system for them. As soon as the night falls in the city, the footpath becomes the bed of the poor. The poor are spending their nights outside big buildings in the city, near towers and stations, hospitals or any government place or sleeping on the streets. Some empty places outside the city become their beds. After working hard, the laborers spend the night on the footpath. Vehicles of big officials pass through this road, but there is no one to see or ask. Along with cold, these people also remain at risk of accident.

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    समाज में सामाजिक न्याय की अवधारणा एक बहुत ही व्यापक शब्द है। इसमें एक व्यक्ति के नागरिक अधिकार तो है ही साथ ही सामाजिक (भारत के परिप्रक्ष्य में जाति एवं अल्पसंख्यक) समानता के अर्थ भी निहितार्थ है। ये निर्धनता, साक्षरता, छुआछूत, मर्द-औरत हर पहलुओं को और उसके प्रतीमानों को इंगित करता है। सामाजिक न्याय की अवधारणा का मुख्य अभिप्राय यह है कि नागरिक नागरिक के बीच सामाजिक स्थिति में कोई भेद न हो। सभी को विकास के समान अवसर उपलब्ध हों। विकास के मौके अगड़े-पिछड़े को उनकी आबादी के मुताबिक मुहैया हो ताकि सामाजिक विकास का संतुलन बनाया जा सके। सामाजिक न्याय का अंतिम लक्ष्य यह भी है की समाज का कमजोर वर्ग, जो अपना पालन करने के लिए भी योग्य न हो। उनका, विकास में भागीदारी सुनिश्चित हो। जैसे विकलांग, अनाथ बच्चे। दलित, अल्पसंख्यक, गरीब लोग, महिलाएं अपने आपको असुरक्षित न महसूस करे। संसार की सभी आधुनिक न्याय प्रणाली प्राकृतिक न्याय की कसौटी पर खरा उतरने की चेष्टा करती है, अंतिम लक्ष्य होता है कि समाज के सबसे कमजोर तबके का हित सुरक्षित हो सके अन्याय न हो। यदि वर्तमान भारतीय न्याय प्रणाली पर गौर करे तो यह कई विभागों में बांटी गई है, जैसे फौजदारी, दीवानी, कुटुम्ब, उपभोक्ता आदि आदि। लेकिन इन सभी का किसी न किसी रूप में सामाजिक न्याय से सरोकार होता है। सामाजिक न्याय की अवधारणा के मुख्य आधार स्तम्भ ये हैं:-

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  • प्राथमिक विद्यालय में जो बच्चों को शिक्षा मिल रही है वह उन छात्रों को आज के इस आधुनिक युग में कितना आगे बढ़ा पा रही है ?प्राथमिक विद्यालय में जो बच्चों को शिक्षा मिल रही है वह उन छात्रों को आज के इस आधुनिक युग में कितना आगे बढ़ा पा रही है ?

    प्राथमिक विद्यालय में जो बच्चों को शिक्षा मिल रही है वह उन छात्रों को आज के इस आधुनिक युग में कितना आगे बढ़ा पा रही है ?

    आज के गांव शहर के प्राथमिक विद्यालय में जो बच्चों को शिक्षा मिल रही है वह उन छात्रों को आज के इस आधुनिक युग में कितना आगे बढ़ा पा रही है। इसलिए क्योंकि की भारत में नारा "सब पढ़ें सब बढ़े" का है कतार में खड़े हुए अंतिम विद्यार्थी को उनकी शिक्षा उन्हें कितना आगे बढ़ा पा रही है कितनी ऊंचाईयों तक पहुंचा पा रही है। इस मुख्य बिंदु पर बड़ी गम्भीरता से ध्यान देना अत्याधिक आवश्यक है। धरातल पर शिक्षा की तस्वीर का क्या रूप है। उन विद्यार्थियों के जीवन में उस शिक्षा का क्या योगदान है।जो गरीब परिवारों से निकलकर शिक्षा ग्रहण करने आते हैं। तथा दरिद्र एवं दुर्लभ परिस्थितियों से जूझते एवं संघर्ष करते हुए गांव के पास की पाठशाला में पहुंचते हैं। इसलिए कि जीवन की तंगहाली ने उन्हें जीवन का आभास भी करने से वंचित कर रखा है।यदि शब्दों की सत्यता को ध्यान में रखते हुए ईमानदारी से प्रस्तुत किया जाए तो अब शिक्षा धन पर ही आधारित दिखाई दे रही। जिससे छात्र छात्राओं के सपने को कुचला जा रहा है। जिसकी वजह से आपको अब के वर्तमान स्थिति में गांव के छात्र पढ़ाई को नजरंदाज कर बचपन में ही पैसे कमाने के उपाय खोज रहे हैं। और पढ़ने की इच्छा को मार रहें हैं। जिसकी वजह से भारत की युवा शक्ति नसे- शराब पीना खाना भी अब 15से 20 साल के बच्चे शुरु कर दे रहे हैं । इसपर भारत सरकार को विशेष ध्यान देना चाहिए। और कड़े कदम उठाने चाहिए। और भारत के अंतिम झोपड़ी के बालक अच्छे से पढ़ाई लिखाई कर सकें इसके लिए हर सुविधा उपलब्ध कराना चाहिए। और उनके गरीबी की बेड़ियों को तोड़ना चाहिए। जिससे वो भी भारत और दुनिया में शीर्ष स्थान पर पहुंच सके।.

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  • भारत का भूखमरी रिपोर्ट 2022 में 107 वां स्थान भारत का भूखमरी रिपोर्ट 2022 में 107 वां स्थान

    भारत का भूखमरी रिपोर्ट 2022 में 107 वां स्थान

    भूख का नाम सुनते ही तुरंत पेट की तरफ ध्यान पड़ता है क्योंकि "भूख" एक भावना से जुड़ा शब्द है। क्योंकि शरीर को स्वस्थ रखने के लिए और दिन भर के कार्यों को करने के लिए पेट भरना बहुत जरुर है ।और भूखमरी से जुड़े लेख पढ़ने वाले हम में से अधिकांश बड़े दिल वाले होते हैं जो अपने आस पास गरीबी को देखते हैं और समझते हैं । खाने के लिए हमारे पास पर्याप्त या उससे भी अधिक है। लेकीन इसी भारत के बहुत भारतीय लोगों या परिवारों के पास एक समय का भोजन करने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है। तब जाके वो अपने बीवी बच्चों का पेट पालते हैं। वो भी उनका पेट अच्छी तरह से नहीं भर पाता। दुनिया भर के लिए जारी होने वाली यह रिपोर्ट इसलिए भी परेशान करने वाला है कि 2022 ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 121 देशों में से 107 वें स्थान पर है।जो की 2021 में 101 स्थान पर थी। "भूखमरी रैकिंग" में भारत की जगह उत्तर कोरिया, इथियोपिया, सूडान, रवांडा, नाइजीरिया और कांगो से भी नीचे है। जबकि भारत एक सर्व संपन्न देश है।.

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  • भारत में कृषि स्तर को सुधारने के लिए सलाह।भारत में कृषि स्तर को सुधारने के लिए सलाह।

    भारत में कृषि स्तर को सुधारने के लिए सलाह।

    भारतीय कृषि में पिछले कुछ गत वर्षों में कृषि विकास में तेजी से कमी आई है। किसानों के लिए आवश्यक समर्थन पद्धतियों जैसे कि अनुसंधान, विस्तार, इनपुट आपूर्ति और आश्वस्त लाभप्रद विपणन के लिए अवसरों की समीक्षा और उनमें सुधार करने की आवश्यकता है। वर्तमान में सरकार की नीतियां जरूर बनती हैं लेकिन उनका सही क्रियान्वयन नहीं हो पाता, जिससे उनका उद्देश्य हासिल नहीं हो पाता। फसल बीमा योजना, कृषि सिंचाई योजना, परंपरागत कृषि विकास योजना, किसान संपदा योजना, स्वास्थ्य हेल्थ कार्ड आदि सरकारी योजनाओं से किसानों में उत्साहवर्धन अवश्य हुआ लेकिन इन योजनाओं का सही क्रियान्वयन नहीं हो पाया जिससे उद्देश्य हासिल नहीं हो पाया।.

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